परानिधेश भारद्वाज,
कहने को तो डॉक्टर राम लखन सिंह भारतीय जनता पार्टी से विधायक और सांसद रहे लेकिन उनके राजनीति से संन्यास लेने के बाद जब उन्होंने अपने पुत्र को राजनीति में आगे किया तो भाजपा ने संजीव सिंह पर भरोसा नहीं जताया। जिसके चलते वर्ष 2013 में पूरी उम्मीद के बावजूद संजीव सिंह का टिकट काटकर नरेंद्र सिंह कुशवाह को दिया गया। ऐसे में संजीव सिंह अगस्त 2013 में भाजपा छोड़ कर बसपा में शामिल हो गए। लेकिन इस चुनाव में वह जीत हासिल नहीं कर सके। हालांकि वर्ष 2018 में एक बार फिर से वह बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और इस बार उन्होंने रिकार्ड मतों से जीत हासिल करते हुए विधानसभा में धमाकेदार एंट्री ली। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी और उसमें बाहर से बसपा का भी समर्थन रहा। ऐसे में संजीव सिंह कुशवाह को पूरा सम्मान मिला।
2020 में सत्ता पलट के बाद भाजपा की सरकार बनने पर संजीव सिंह कुशवाह भी बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए। उन्हें पूरी उम्मीद थी कि 2023 में भी उन्हें टिकट मिल जाएगा, लेकिन भाजपा द्वारा एक बार फिर से संजीव सिंह कुशवाह को दरकिनार कर नरेंद्र सिंह कुशवाह को टिकट दे दिया गया।
जिसके बाद संजीव सिंह कुशवाह ने बहन मायावती जी से माफी मांगते हुए फिर से बसपा में एंट्री ले ली और अब वह एक बार फिर से हाथी पर सवार होकर लोगों से वोट की अपील कर रहे हैं। संजीव सिंह कुशवाह अपने कार्यकाल में हुए कार्यों को जनता के बीच गिना रहे हैं और एक बार फिर से उन पर भरोसा जताने के लिए निवेदन कर रहे हैं। उनका इस बार भी सीधा मुकाबला कांग्रेस के चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी और भाजपा के नरेंद्र सिंह कुशवाह से है। अब 17 नवंबर को मतदान के बाद 3 दिसंबर को परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा कि जनता का कितना आशीर्वाद उन्हें मिला।
