भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से लें संघर्ष करने की सीख- प्राचीदेवी
लहार (भिण्ड): लहार नगर के वार्ड क्रमांक 11 मढ़यापुरा के हनुमानजी मंदिर पर आयोजित श्रीमदभागवत कथा के अंतिम दिवस अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक पूज्य प्राचीदेवी ने कहा- लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती है। जीवन में कभी ज्यादा समय तक अच्छा और बुरा समय नहीं रहता। जब भी विपत्ति आती है तो लोग घबरा जाते हैं। बच्चों को इस पर ध्यान देना चाहिए कि जीवन की कोई परीक्षा अंतिम नहीं होती। कुछ बच्चे परीक्षा में फैल हो जाते हैं तो डिप्रेशन में चले जाते हैं। ऐसे लोगों को भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से संघर्ष करने की सीख लेनी चाहिए। कथा का प्रेरणादायक प्रसंग पर कथा वाचक देवी जी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण का जीवन संघर्ष मय रहा। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कंस के कारागार में मथुरा में हुआ, पालन पोषण वृंदावन में यशोदा और नंदबाबा के घर हुआ। बचपन में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कई बार श्रीकृष्ण पर बालकाल में जानलेवा हमला हुआ। थोड़ा बड़े हुए तो उनका मामा कंस ही उनका दुश्मन बना रहा। मामा का वध भगवान श्रीकष्ण ने किया। इसके बाद जरासंध से हार कर रण छोड़ बने। उन्होंने सीख दी कि जीवन संघर्षों का पर्याय है और उनसे आगे बढ़ते रहना जीवन जीने की कला है।
अंतिम दिन भगवान श्रीकृष्ण रूकमिणी जी के विवाह की कथा सुनाई। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण को कालबुमन नामक राक्षस से लड़ाई के दौरान पीठ दिखाकर रण से भागना पड़ा। तब वे रणछोड़ भगवान कहलाए। इसके बाद कालबुमन राक्षस का वध बड़ी युक्त से ऋषि से करवाया। इसके बाद कई बार जरासंध से युद्ध में परास्त हुए। इसके बाइ भीम से जरासंध का वध करवाया।
भगवान श्रीकृष्ण व रूकमणी के विवाह में झूमे श्रोता
कथा के दौरान भगवान श्रीकृष्ण और रूकणमी का विवाह आयोजित कराया गया। इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण और रूकमणी का पैर पूजन कार्यक्रम भी आयोजित किया गया। इस मौके पर भजन कीर्तन पर महिलाएं व पुरूष झूमकर नाचे और बधाई गीत गाए गए। इस मौके पर मुख्य यजमान संतोष मढ़या श्रीमती हेमलता मढ़या ने रूकमणी जी का विवाह में कन्यादान कर पूजा-अर्चना की। इसके बाद कथा का आगे का शाब्दिक चित्रण द्वारिकाधीश भगवान के रूप में किया गया। इसी कथा में सुदामा चरित्र की भाव विभोर कर देने वाली कथा भी सुनाई। सुदामा को दो लोकों का स्वामी भगवान ने चावल की दाे मुठ्ठी देकर बना दिया। देवी जी ने जब बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने तीसरे लोक का स्वामी बनाने के लिए तीसरी मुठ्ठी चावल ली तभी रूकमणी जी ने हाथ पकड़ लिया।
इसके साथ कथा वाचक प्राची देवी ने गुरु की महिमा जीवन में बताई। कथा के दौरान आरती परीक्षत कटोरीदेवी स्व.रामलखन मढ़या द्वारा की गई।
इस मौके पर मुख्य तौर पर बीजेपी नेता अशोक भारद्वाज मेहगांव, संत गोपाल दास महाराज बरूअनपुरा, चित्रकूट से आए स्वामी प्रभुत्वानंद महाराज समेत कई संत एवं गणमान्य जन मौजूद रहे।