परानिधेश भारद्वाज,
भिण्ड। गोपाष्टमी के पावन अवसर पर नगर स्थित मंशापूर्ण गौशाला परिसर में आयोजित तीन दिवसीय आध्यात्मिक प्रवचन के प्रथम दिवस पूज्यपाद अनंतश्री विभूषित श्री काशीधर्मपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि, संसार का सुख शास्वत नहीं है, प्राणी क्षणिक सुख के लिए अनंत काल से बंधन में पड़ता आ रहा है। मानव शरीर की दुर्लभता का विचार किये बिना मनुष्य नाना प्रकार के दुष्कृत्यों को कर अपना पतन करता है। सृष्टि में गुरु ही ऐसे तत्व हैं जो जीव को शाश्वत सुख की प्राप्ति करा सकते हैं। मोक्ष की इच्छा रखने वाले प्राणियों को विवेक पूर्वक विचार कर गुरु सान्निध्य में रहकर आत्मकल्याण के मार्ग में प्रशस्त हो जाना चाहिए।
पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने आगे बताया कि गोपाष्टमी का पर्व सनातन धर्म में अक्षय संस्कृति का प्रतीक है। जो हमें प्राणिमात्र के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का संदेश देती है। हम सभी मनुष्यों को संकल्प लेना चाहिए कि पाश्चात्य संस्कृति को छोड़कर वैदिक संस्कृति के आधार गौवंश की समृद्धि के लिए तन, मन, धन से लग जाना चाहिए। आज के परिवेश में गौवंश के पतन का मुख्य कारण घर-घर गौ सेवा से वंचित होना है। यही कारण है कि जहाँ पर एक समय प्रत्येक द्वार पर गौवंश की पूजा होती थी, वहीं आज के परिवेश में गौवंश का संरक्षण गौशालाओं तक सीमित हो गया है।

स्वामी जी ने आगे कहा कि, हमारे प्रारब्ध कर्म नष्ट करने के लिए ही हमको दु:ख दिये जाते है। दु:ख का कारण तो हमारे अपने ही कर्म हैं जिनको हमें भुगतना ही है। यदि दु:ख नहीं आयेगें तो कर्म कैसे कटेंगे?उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि एक छोटे बच्चे को उसकी माता साबुन से मलमल के नहलाती है जिससे बच्चा रोता है, परंतु उस माता को उसके रोने की कुछ भी चिंता नहीं है। जब तक उसके शरीर पर मैल दिखता है, तब तक उसी तरह से नहलाना जारी रखती है, और जब मैल निकल जाता है, तब ही मलना, रगड़ना बंद करती है। वह उसका मैल निकालने के लिए ही उसे मलती, रगड़ती है, कुछ द्वेषभाव से नहीं। माँ उसको दु:ख देने के अभिप्राय से नहीं रगड़ती, परंतु बच्चा इस बात को समझता नहीं इसलिए इससे रोता है।

इसी तरह हमको दु:ख देने से परमेश्वर को कोई लाभ नहीं है। परंतु हमारे पूर्वजन्मों के कर्म काटने के लिए, हमको पापों से बचाने के लिए और जगत का मिथ्यापन बताने के लिए वह हमको दु:ख देता है। अर्थात् जब तक हमारे पाप नहीं धुल जाते, तब तक हमारे रोने चिल्लाने पर भी परमेश्वर हमको नहीं छोड़ता।
इस अवसर पर मंशापूर्ण गौसेवा समिति, नारायण सेवा समिति के पदाधिकारियों एवं अन्यान्य भक्तों ने पादुका पूजन एवं माल्यार्पण कर शंकराचार्य जी का आशीर्वाद प्राप्त किया। सभी कार्यक्रमों के आयोजन में मंशापूर्ण गौशाला में गायों की सेवा में पूरे मनोभाव के साथ तन मन धन से सेवा में जुटे रहने वाले गौसेवक विपिन चतुर्वेदी ने महती भूमिका निभाई।
