परानिधेश भारद्वाज,
भिण्ड। मध्य प्रदेश के भिंड जिले में स्थित बरासों तीर्थ क्षेत्र में लगभग एक हजार करोड़ रुपए से तीर्थ क्षेत्र को विकसित किया जाएगा, जिसमें अकेले सुमेरु पर्वत के निर्माण में 400 करोड़ खर्च किये जायेंगे, जिसका शिलान्यास 16 मार्च को किया जाएगा। तपस्वी जैनाचार्य 108 सुबल सागर महाराज ने जानकारी देते हुए बताया कि लगभग 400 करोड रुपए की लागत से 414 फीट की ऊंचाई का विशाल अत्याधुनिक सुमेरु पर्वत बनाया जाएगा। इसके साथ ही जिनालय, अस्पताल, विद्यालय, गौशाला, धर्मशाला आदि का निर्माण भी बरासों तीर्थ क्षेत्र में किया जाएगा।
दरअसल जैन समाज के बरासों तीर्थ क्षेत्र में तीन बार भगवान महावीर स्वामी का समोशरण हुआ था, लेकिन उसके बावजूद भी यह तीर्थ क्षेत्र अभी तक विकास से वंचित रहा। ऐसे में अब जैन आचार्य 108 श्री सुबल सागर जी महाराज ने इस तीर्थ क्षेत्र को विकसित करने का बीड़ा उठाया है। मार्च महीने में 10 मार्च से लेकर 14 मार्च तक पंच कल्याणक कार्यक्रम इस तीर्थ क्षेत्र में आयोजित किए जाएंगे। वहीं 16 मार्च को 414 फुट ऊंचे सुमेरु पर्वत की आधारशिला रखी जाएगी। इस पर्वत की चौड़ाई 171 फीट रहेगी।
आचार्य सुबल सागर महाराज ने जानकारी देते हुए बताया कि सुमेरु पर्वत को बनाने में लगभग 400 करोड़ रुपए का खर्चा आएगा। इसके साथ ही चार सौ से छः सौ करोड़ रुपए में तीर्थ क्षेत्र में अन्य विकास कार्य किए जाएंगे। जिनमें धर्मशाला का निर्माण, अस्पताल, विद्यालय निर्माण, बेजुबान जानवरों और पक्षियों के लिए भी अस्पताल, जिनालय का निर्माण आदि कार्य किए जाएंगे। सुमेरु पर्वत में विभिन्न माप की प्रतिमाओं की स्थापना की जाएगी। यह सुमेरु पर्वत बिल्कुल अत्याधुनिक होगा जिसमें लोगों को एक अलग आध्यात्मिक अनुभूति होगी।
आचार्य सुबल सागर जी द्वारा बताया गया कि शिलान्यास के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को आमंत्रण दिया जा रहा है। इसके साथ ही भव्य कार्यक्रम में लगभग 1 लाख लोगों के जुटने की संभावना उन्होंने जताई है। जिसके लिए जिलाधीश संजीव श्रीवास्तव एवं पुलिस अधीक्षक डॉ असित यादव से भी बातचीत की गई है। ताकि तीर्थ क्षेत्र में पर्याप्त व्यवस्थाएं की जा सकें।
बरासों तीर्थ क्षेत्र के बारे में जानकारी-
जैन धर्म के चौबीसवे तीर्थंकर महावीर भगवान केवल ज्ञान प्राप्त करने के बाद यहाँ पधारे। उनके समवशरण की भव्य रचना इस बरासों की पावन वसुंधरा पर हुई और एक बार नहीं तीन बार भगवान महावीर का समवशरण इस भूमि पर आया था। इस पावन भूमि पर अनेक अन्य पुण्यात्माओं ने भगवन् की वाणी का रसपान किया।
समवशरण विघटन के बाद देवों के द्वारा एक रात में ही एक भव्य जिनालय का निर्माण हुआ। वह आज भी यहीं स्थित है।
एक चरण छतरी मन्दिर से थोड़ी दूरी पर स्थित है और आज भी यहां कार्तिक कृष्ण अभावस्था और पूर्णिमा के दिन एक दीपक छतरी से भगवान के मन्दिर में जाता है। यहाँ देवता अर्धरात्रि में भगवान की आरती करते हैं। कभी-कभी अर्थरात्रि में घंटो की ध्वनि आज भी सुनाई देती है।
एक शिला आकार में बहुत छोटी होने पर भी उसे कोई अपने हाथों से कमर से ऊपर नहीं उठा पाता है। यह चमत्कारिक शिला के नाम से यहाँ आज भी विख्यात है।
मध्य प्रदेश प्रान्त में भिण्ड नगर के लश्कर रोड़ से २० कि.मी. की दूरी पर वैशाली नदी के सुरम्य तट पर स्थित है। प्राचीन अतिशय क्षेत्र बरासों जी के प्राचीन टीले पर देवों द्वारा बनाया गया अतिशयकारी जैन मंदिर आज भी विराजमान है। जिनश्रुति केवली के अनुसार श्री १००८ भगवान महावीर स्वामी जी का समवशरण विपुलाचल पर्वत (राजगृही) के पश्चात् क्षेत्र बरासों जी में शुभ मिती आश्विन कृष्ण द्वितीया के दिन आया था।
भगवान महावीर स्वामी का समवशरण एक बार नहीं, यहाँ तीन बार आया था। बताया जाता है कि जिसमें हजारों की संख्या में मुनिराज थे और तब यहाँ लगभग ७०० जैन परिवार निवास करते थे। देवों ने स्मृति रूप में एक रात में देवोपुनीत जिन मंदिर की रचना की थी।
यहाँ की मूल नायक जिन प्रतिमाओं पर कोई चिन्ह या प्रशस्ति नहीं है। सभी लगभग चतुर्थकालीन जिन प्रतिमाएं है एवं मंदिर जी में विश्व की सबसे बड़ी वेदी है जो की मनोहारी, आकर्षक एवं अतिशयकारी है। जिनके दर्शन मात्र से बिगड़े काम बन जाते हैं। बरासों जी क्षेत्र सौन्दर्य से परिपूर्ण है, मंदिर जी के नीचे वैशली नदी बहती है। वेदी में प्राचीन प्रतिमाएं विराजमान हैं। ऐसा लगता है कि अगम की दृष्टि में संसार का स्वर्ग यहीं पर स्थित है। सबसे प्राचीन बाहुबली स्वामीऔर लगभग 1500 वर्ष प्राचीन प्रतिमाओं का अनूठा दर्शन मिलता है।चतुर्दशी बरासों मंदिर जी में अपने आप घंटों की आवाज सुनाई देती है।
चरण छतरी: इस क्षेत्र में जो देवो पुनीत जिन मंदिर के पीछे है। जहां पहले भट्टारक की तंत्र पीठ थी जिसे संकट मोचन छतरी बोलते हैं जिसका बहुत महत्व है। सुनते आ रहे है कि दीपावली के दिन की रात्रि लगभग १२ बजे एक जलता हुआ दीपक चरण छतरी से आता है। इस दृश्य को देखकर गाँव के लोग उसी समय से उस चरण छतरी की पूजा करते आ रहे हैं। चरण छतरी की भक्ति से सभी की मनोकामनाएं आज भी पूर्ण हो जाती हैं।
बजनी शिलाः जो एक टीले पर रखी है। आज तक कोई भी व्यक्ति उस शिला को कमर से ऊपर नहीं उठा पाया। एक बार उस शिला को वहाँ से गिरा दिया गया, चमत्कार यह हुआ कि वह शिला पुनः उसी स्थान पर आ गई। अतिशय क्षेत्र बरासों जी में वह शिला चमत्कारी पत्थर के नाम से आज भी प्रसिद्ध है।
चतुर्थकालीन जिन प्रतिमाएं: यहाँ सभी प्रतिमायें लगभग 1500 से 2000 वर्ष पुरानी चतुर्थकालीन प्रतिमाये विराजमान है। दर्शन मात्र से ऐसा लगता है जैसे यह प्रतिमाये स्वतः बात कर रही हैं।
आचार्य विशुद्ध सागर जी मुनिराज का यह पैतृक गाँव है। इसी जिन मंदिर में आचार्य भगवान विरागसागर जी मुनिराज ने ब्रह्मचर्य व्रत लिया था। आचार्य भगवन् सन्मतिरत्न, प्रज्ञाश्रमण आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी मुनिराज ससंघ यहाँ पहली बार पावन चरण पड़े, तब उन्होंने भूगर्भ से प्राप्त चतुर्थकालीन अति प्राचीन जिन प्रतिमाओं के चरणों में बैठकर ध्यान किया और निश्चय किया कि समाजोत्थान के लिए इस क्षेत्र के विकास की योजनाओं को अमल में लाकर अतिशीघ्र निर्माण कार्य हो ऐसी भावना व्यक्त की। उसी भावना को पूरा करने के लिए श्री सुमेरु वीर भूमि तीर्थ क्षेत्र बरासों को चुना और भारत के प्रमुख अतिशय क्षेत्र एवं सिद्ध क्षेत्रों में सम्मिलित करने का भाव व्यक्त किया और अनेक योजनाओं को धरातल पर लाने हेतु “आचार्य श्री १०८ सन्मति सुबल सागर जी तीर्थ न्यास, बरासों का गठन किया गया।
अतिशय क्षेत्र बरासो भिण्ड से 20 कि.मी., ग्वालियर से 90 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। आने जाने के लिए हर समय वाहन की सुविधा उपलब्ध रहती है