यूं तो प्रतिदिन हजारों लाखों लोगों के जन्मदिन मनाए जाते हैं। लेकिन भारत जैसे देश में भी धीरे धीरे पाश्चात्य सभ्यता हावी हो रही है और इसका उदाहरण देखने को मिलता है जन्मदिन मनाने की प्रथा से। धीरे-धीरे यहां पर भी सनातन परंपरा को भुलाकर मोमबत्तियां बुझाकर और केक काटकर जन्मदिन मनाया जाने लगा है। जबकि पूजा, अर्चना कर जन्मदिन मनाने की सनातन परंपरा को धीरे-धीरे लोग भूलते जा रहे हैं। जिसे पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है भारत विकास परिषद द्वारा।
जन्मदिन मनाने की इस पुरातन परंपरा को बचाने का बीड़ा उठाया है भारत विकास परिषद ने। भारत विकास परिषद के प्रांतीय दायित्वाधिकारी श्रवण पाठक द्वारा अपने सहयोगियों के साथ मिलकर अधिकतर लोगों का जन्मदिन सनातन पद्धति से मनाने की कोशिश की जा रही है। साथ ही उन्हें जन्मदिन हमेशा सनातन पद्धति से मनाने की भी सीख दी जा रही है।
जब भी किसी परिचित का जन्मदिन होता है तो उसे बड़े ही सात्विक तरीके से गुरुजनों और इष्ट देवों की मूर्ति को सामने रखकर उन पर माल्यार्पण कर एवं दीप प्रज्वलित कर एवं गायत्री मंत्र का पाठ कर जन्मदिन मनाया जाता है। भिण्ड जिले में इस परंपरा को आगे बढ़ा रहे भारत विकास परिषद के प्रांतीय दायित्वाधिकारी श्रवण पाठक का भी जन्मदिन था, जिसे भी बड़े ही सात्विक तरीके से मनाया गया। इस दौरान कई जगह दीप प्रज्वलित कर एवं मालाएं पहनाकर उनका जन्मदिन मनाया गया।
श्रवण पाठक का कहना है कि सनातन संस्कृति में हम काटने नहीं बल्कि जोड़ने की परंपरा में यकीन रखते हैं, इसीलिए केक काटने की जगह, कई फूलों से गुथी हुई मालाएं पहनाकर भारत विकास परिषद द्वारा जन्मदिन मनाया जाता है। पाश्चात्य सभ्यता में मोमबत्तियों को बुझाया जाता है, जबकि सनातन संस्कृति में हम दीप को प्रज्वलित कर सभी को उजाला देने का संदेश देते हैं। वास्तव में पाश्चात्य जन्मदिन मनाने की प्रथा से कहीं बढ़कर सनातन जन्मदिन मनाने की प्रथा बेहतर है। वह हमेशा सभी से सनातन संस्कृति में ही जन्मदिन मनाने की अपील करते हैं। हाल ही में कई लोगों के जन्मदिन उन्होंने सनातन संस्कृति से मनाए भी हैं।
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