भिण्ड। शहर के बीचों बीच विशाल गौरी तालाब किनारे शिव जी के कई मंदिर स्थित हैं। बताया जाता है कि इन मंदिरों का निर्माण एक ही रात में हुआ था। किवदंती तो यह है कि एक ही रात में 100 मंदिर बन गए थे तभी किसी महिला ने समय से पहले हाथ चक्की चला दी और फिर मंदिरों का निर्माण वहीं रुक गया। अगर 8 मंदिर और बन जाते तो यहां भी बटेश्वर जैसा बन जाता। हालांकि यह किवदंती है और इसमें कितनी सच्चाई है यह इतिहास के गर्त में ही छिपा हुआ है।
भगवान गणेश जी को प्रथम पूज्य का दर्जा मिला हुआ है और खुद भगवान शिव ने गणेश जी को यह वरदान दिया था। उनके प्रथम पूज्य होने की बात गौरी किनारे स्थित मंदिरों को देखकर बिल्कुल सत्य प्रतीत होती है। यहां शिवजी के भले ही एक सैकड़ा मंदिर स्थित हैं लेकिन सबसे पहले गणेश जी का ही मंदिर मिलता है। यहां भगवान गणेश की विशाल प्रतिमा विराजमान है और इनके विशाल आकार के चलते ही शायद इन्हें मोटे गणेश जी कहा जाता है। यहां पर हर बुधवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु मोटे गणेश जी के दर्शनों के लिए आते हैं। हालांकि वर्तमान में एक काली मंदिर भी गणेश मंदिर से कुछ पहले स्थापित है लेकिन इस मंदिर की स्थापना कुछ वर्षों पहले ही की गई है। ऐसे में गौरी सरोवर किनारे प्राचीन मंदिरों की श्रृंखला में मोटे गणेश जी का मंदिर ही पहले स्थान पर आता है। गणेश जी की प्रतिमा के सामने ही शिवलिंग भी स्थापित है।
गौरी किनारे सबसे पहले गणेश जी का ही अति प्राचीन मंदिर है। और फिर इसके बाद शुरू होती है शिव मंदिरों की श्रृंखला जो कि प्राचीन गौरी सरोवर के चारों ओर स्थित हैं। इनकी संख्या सौ बताई जाती है लेकिन वर्तमान में कम मंदिर ही दिखाई पड़ते हैं। कुछ मंदिर तो शायद मिट्टी से आच्छादित भी हो गये। ऐसा ही एक मंदिर है त्रयम्बकेश्वर महादेव मंदिर, जिसका जीर्णोद्धार बिहारी ग्रुप ऑफ स्कूल्स के संचालक राजेश शर्मा ने उस समय करवाया जब तत्कालीन कलेक्टर इलैया राजा टी ने जन सहयोग से गौरी किनारे बेकार पड़ी जमीन में पार्कों का निर्माण कराया और तभी मिट्टी के अंदर दब चुके एक शिव मंदिर का भी जीर्णोद्धार करवाकर उसे भव्य स्वरूप प्रदान किया गया, जिसे त्रयम्बकेश्वर महादेव मंदिर का नाम दिया गया है। आज बड़ी संख्या में भक्त त्रयम्बकेश्वर महादेव के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
शिव मंदिरों की इसी श्रृंखला के बीच वनखंडेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर स्थित है। बताया जाता है कि इसका निर्माण पृथ्वीराज चौहान ने 11वीं शताब्दी में उस समय कराया था जब सन 1175 में वह महोबा के चंदेल राजाओं से युद्ध करने जा रहे थे। उस समय यहां पर घना जंगल हुआ करता था जिसके चलते ही इस मंदिर का नाम वनखंडेश्वर पड़ा। तभी से लेकर अब तक इस मंदिर में अखंड ज्योति भी प्रज्वलित हो रही है। जिसमें घी का प्रयोग किया जाता है। कई बार बारिश के मौसम में बाढ़ भी आई और पानी ने शिवलिंग को डुबो दिया। लेकिन अखंड ज्योति को छूकर वापस हो गया। वैसे तो यहां प्रतिदिन भक्तों का तांता लगा रहता है। लेकिन श्रावण मास में भक्तों की अच्छी खासी भीड़ वनखंडेश्वर मंदिर पहुंचती है। शिवरात्रि पर तो यहां हजारों कांवड़िए कांवड़ लेकर पहुंचते हैं और गंगाजल से भगवान वनखंडेश्वर का अभिषेक करते हैं।
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